Uttar Pradesh में योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई गई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है राज्य में पुलिस एनकाउंटर की बढ़ती संख्या, जिसने अपराधियों में खौफ पैदा कर दिया है। पुलिस अब बदमाशों को ढूंढ-ढूंढकर गिरफ्तार कर रही है या मुठभेड़ में मार गिरा रही है। इस सख्ती का असर राज्य के कोने-कोने में दिख रहा है, फिर चाहे वह पश्चिमी यूपी का मेरठ हो या पूर्वी यूपी का कुशीनगर।
झांसी में फौजी के साथ मारपीट का मामला: पिता-पुत्र गिरफ्तार
हाल ही में झांसी में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई थी। यहां एक फौजी को कुछ लोगों ने बेरहमी से पीटा था। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद पुलिस पर तेजी से कार्रवाई करने का दबाव बढ़ा। पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत एक्शन लिया और मारपीट के आरोपी पिता-पुत्र को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की इस त्वरित कार्रवाई ने यह संदेश दिया है कि कानून को हाथ में लेने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, भले ही वे कोई भी हों।
मेरठ से कुशीनगर तक ‘ठांय-ठांय’ का खौफ
पुलिस मुठभेड़ों को लेकर अक्सर ‘ठांय-ठांय’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जो अब अपराधियों के लिए डर का पर्यायवाची बन गया है। यह शब्द यूपी पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई को दर्शाता है। राज्य के हर हिस्से में, छोटे-बड़े अपराधियों पर पुलिस की नजर है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर जैसे पश्चिमी जिलों में जहां पहले गैंगवार और संगठित अपराध का बोलबाला था, वहां अब स्थिति नियंत्रण में है। वहीं, पूर्वी जिलों जैसे कुशीनगर, गोरखपुर, और वाराणसी में भी पुलिस सक्रियता बढ़ी है, जिससे अपराधों की संख्या में कमी आई है।
एनकाउंटर नीति: पक्ष और विपक्ष में तर्क
Uttar Pradesh में एनकाउंटर नीति को लेकर बहस भी जारी है। सरकार और पुलिस का कहना है कि यह नीति अपराध नियंत्रण के लिए जरूरी है। इससे अपराधियों के हौसले पस्त होते हैं और आम जनता में सुरक्षा की भावना बढ़ती है। हालांकि, कुछ मानवाधिकार संगठन और विपक्षी दल इस नीति पर सवाल उठाते हैं। उनका तर्क है कि कई बार ये मुठभेड़ फर्जी भी हो सकती हैं और यह कानून के राज के खिलाफ है।
यह सच है कि पुलिस मुठभेड़ों ने यूपी की कानून-व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाया है, लेकिन यह भी जरूरी है कि हर कार्रवाई निष्पक्ष और पारदर्शी हो। फिलहाल, यह साफ है कि यूपी में अपराधियों के लिए अब पहले जैसे हालात नहीं हैं। पुलिस की सख्ती ने उन्हें भूमिगत होने या राज्य छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।
यह लेख केवल उपलब्ध जानकारी पर आधारित है और इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति या समूह का समर्थन या विरोध करना नहीं है।