हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया, जिससे ब्याज दरें 5.5% पर बनी रहीं। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितताएँ बढ़ रही हैं, खासकर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा भारत पर लगाए गए नए टैरिफ के बाद। RBI का यह फैसला भारत की आर्थिक रणनीति और अमेरिका के साथ उसके व्यापारिक संबंधों के बीच एक जटिल संतुलन को दर्शाता है।
RBI का निर्णय और उसका निहितार्थ
RBI के इस फैसले के पीछे कई प्रमुख कारण हैं। सबसे पहले, मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान। जबकि भारत में महंगाई दर नियंत्रण में है, वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और कच्चे तेल की कीमतों में संभावित वृद्धि को देखते हुए, RBI ने सतर्क रुख अपनाया है। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के कारण आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे घरेलू बाजार में मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में, ब्याज दरों में कटौती करने से यह दबाव और बढ़ सकता था।
दूसरे, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएँ। ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने से भारत के निर्यात पर सीधा असर पड़ने की आशंका है। इससे विशेष रूप से कपड़ा, रत्न, आभूषण और चमड़े जैसे क्षेत्रों में निर्यात प्रभावित हो सकता है। RBI ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में इन ‘वैश्विक अनिश्चितताओं’ का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है। ब्याज दरों में कटौती न करके, RBI ने एक तरह से अर्थव्यवस्था को इन संभावित झटकों से बचाने के लिए एक ‘बफर’ तैयार करने की कोशिश की है।
तीसरे, विकास दर का अनुमान। RBI ने मौजूदा वैश्विक चुनौतियों के बावजूद वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.5% पर बरकरार रखा है। यह दर्शाता है कि RBI को भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक ताकत पर भरोसा है। ब्याज दरें अपरिवर्तित रखकर, RBI यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखते हुए विकास को बढ़ावा देने का उसका दोहरा लक्ष्य बना रहे।
ट्रंप के टैरिफ का प्रभाव
डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा भारत पर लगाए गए 25% टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह से असर पड़ सकता है। यह टैरिफ भारत के कुल निर्यात का लगभग आधा हिस्सा प्रभावित कर सकता है। इसका सबसे बड़ा असर उन भारतीय निर्यातकों पर पड़ेगा जो अमेरिका के बाजारों पर निर्भर हैं। इससे उनके मुनाफे में कमी आ सकती है, जिससे रोजगार और निवेश पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
यह टैरिफ विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए एक चुनौती है जहां भारत पहले से ही अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है, जैसे कि झींगा और कपड़ा उद्योग। इस अतिरिक्त शुल्क के कारण, भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजारों में अधिक महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी।
RBI का फैसला: एक रणनीतिक कदम
RBI का ब्याज दरों को स्थिर रखने का निर्णय, ट्रंप के टैरिफ के मद्देनजर एक रणनीतिक कदम माना जा सकता है। यह न केवल मुद्रास्फीति के संभावित दबाव को नियंत्रित करने के लिए है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि भारत अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर बाहरी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है। यह कदम भारत को एक मजबूत स्थिति में रखता है, ताकि वह अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता में अपने हितों की बेहतर रक्षा कर सके।
कुल मिलाकर, RBI का यह फैसला एक संतुलित और सतर्क दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दिखाता है कि भारत वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और अमेरिका जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ उत्पन्न होने वाले तनाव के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए तैयार है। यह निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक स्थिरता और विकास की क्षमता पर उसके विश्वास को भी उजागर करता है।