मलयालम फिल्म ‘JSK – Janaki Vs State of Kerala’ का विवाद अब केरल उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है, और इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा फिल्म के शीर्षक और मुख्य किरदार के नाम ‘जानकी’ पर आपत्ति जताए जाने के बाद, केरल उच्च न्यायालय ने फिल्म को व्यक्तिगत रूप से देखने का फैसला किया है। न्यायमूर्ति एन. नागेश 5 जुलाई, शनिवार को इस फिल्म की विशेष स्क्रीनिंग देखेंगे, जिसके बाद 9 जुलाई को अगली सुनवाई होगी।
विवाद क्या है?
‘JSK – Janaki Vs State of Kerala’ एक कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म है, जिसमें केंद्रीय मंत्री और अभिनेता सुरेश गोपी एक वकील की भूमिका में हैं, जो एक बलात्कार पीड़िता ‘जानकी’ के लिए न्याय लड़ रहे हैं। विवाद तब शुरू हुआ जब CBFC की रिवीजन कमेटी ने फिल्म को प्रमाणन देने से इनकार कर दिया। बोर्ड का तर्क है कि ‘जानकी’ नाम हिंदू देवी सीता से जुड़ा है, और बलात्कार पीड़िता के लिए इस नाम का उपयोग धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है। CBFC ने फिल्म निर्माताओं से शीर्षक और फिल्म में जहां भी ‘जानकी’ नाम का उल्लेख है, उसे बदलने की मांग की।
उच्च न्यायालय का रुख:
केरल उच्च न्यायालय ने CBFC के इस तर्क पर कड़ा सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति नागेश ने पहले ही CBFC के इस दावे को खारिज कर दिया था कि शीर्षक से धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि भारतीय सिनेमा में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां देवी-देवताओं के नाम पर फिल्में बनी हैं, और उनमें कोई विवाद नहीं हुआ है। कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि जब फिल्म का टीज़र बिना किसी आपत्ति के पास कर दिया गया था, तो अब पूरे नाम पर आपत्ति क्यों उठाई जा रही है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल इसलिए कि ‘जानकी’ नाम एक देवता से भी जुड़ा है, फिल्म की रिलीज को रोकने का यह वैध आधार नहीं हो सकता।
न्यायालय ने CBFC से यह स्पष्टीकरण देने को कहा है कि ‘जानकी’ नाम का उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता, जबकि फिल्म में जानकी न्याय के लिए लड़ने वाली एक नायिका है, न कि कोई दोषी। अदालत ने यह भी कहा कि सेंसर बोर्ड फिल्म निर्माताओं को यह निर्देशित नहीं कर सकता कि वे अपने किरदारों के लिए किन नामों का उपयोग करें या कौन सी कहानियाँ सुनाएँ।
फिल्म उद्योग का विरोध:
CBFC द्वारा प्रमाणन में देरी और आपत्ति ने मलयालम फिल्म उद्योग में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है। फिल्म निर्माता, कलाकार और विभिन्न फिल्म संगठन तिरुवनंतपुरम में CBFC कार्यालय के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि CBFC का यह कदम मनमाना है और रचनात्मक स्वतंत्रता पर हमला है। फिल्म के निर्माताओं, एम/एस कॉसमॉस एंटरटेनमेंट्स, ने उच्च न्यायालय का रुख किया है, उनका कहना है कि इस देरी से उन्हें गंभीर वित्तीय नुकसान हो रहा है और यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
आगे क्या?
फिल्म ‘JSK – Janaki Vs State of Kerala’ 27 जून को विश्व स्तर पर रिलीज होने वाली थी, लेकिन CBFC द्वारा प्रमाणन से इनकार के कारण इसे रोक दिया गया है। अब सभी की निगाहें 5 जुलाई को होने वाली उच्च न्यायालय की निजी स्क्रीनिंग और 9 जुलाई को आने वाले फैसले पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय का फैसला कलात्मक स्वतंत्रता और फिल्म प्रमाणन दिशानिर्देशों के बीच संतुलन कैसे स्थापित करता है। यह मामला भारतीय फिल्म उद्योग में सेंसरशिप और रचनात्मक अभिव्यक्ति की सीमाओं पर एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है।