Friday, August 1, 2025
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Janaki V Vs State of Kerala’ फिल्म समीक्षा: असंवेदनशील और बेमकसद प्रयास

मलयालम सिनेमा, अपनी यथार्थवादी कहानियों और सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ के लिए जाना जाता है, लेकिन कभी-कभी कुछ फिल्में उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पातीं। हाल ही में रिलीज हुई सुरेश गोपी और अनुपमा परमेश्वरन अभिनीत ‘Janaki V Vs State of Kerala’ ऐसी ही एक फिल्म है, जो अपने विषय वस्तु के प्रति असंवेदनशीलता और एक स्पष्ट उद्देश्य की कमी के कारण दर्शकों को निराश करती है। यह फिल्म एक ऐसे जटिल मुद्दे को छूने का प्रयास करती है, जिसे वह न तो ठीक से समझ पाती है और न ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर पाती है।

कहानी और उसका खोखलापन: फिल्म की कहानी जानकी (अनुपमा परमेश्वरन) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक अप्रत्याशित कानूनी उलझन में फंस जाती है। सुरेश गोपी एक वकील की भूमिका में हैं, जो जानकी को इस मुश्किल से निकालने का प्रयास करते हैं। फिल्म का मूल विचार शायद न्यायपालिका के पेचीदा पहलुओं या किसी सामाजिक विडंबना को उजागर करना रहा होगा, लेकिन यह अपने निष्पादन में बुरी तरह विफल रहती है। कहानी सतही लगती है और इसमें वह गहराई नहीं है, जिसकी ऐसे विषयों से अपेक्षा की जाती है। दर्शकों को पात्रों के साथ जुड़ने का मौका ही नहीं मिलता, क्योंकि उनके संघर्षों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।

असंवेदनशीलता का आरोप: फिल्म का सबसे बड़ा दोष इसकी असंवेदनशीलता है। जिस मुद्दे को यह उठाती है, उसे हल्के-फुल्के ढंग से या कभी-कभी तो हास्यास्पद तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जो विषय की गंभीरता को कम कर देता है। संवेदनशील मुद्दों को सिनेमा में उठाते समय एक निश्चित परिपक्वता और सम्मान की आवश्यकता होती है, जो इस फिल्म में नदारद है। यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करने के बजाय, उन्हें भ्रमित और असहज महसूस कराती है। ऐसा लगता है कि फिल्म निर्माताओं ने सिर्फ एक ‘विवादास्पद’ विषय को चुना, लेकिन उसके सामाजिक या भावनात्मक प्रभावों को समझने की कोशिश नहीं की।

बेमकसद पटकथा और दिशाहीन निर्देशन: पटकथा फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है। संवाद बेजान हैं और कहानी में कोई ठोस मोड़ या विकास नहीं दिखता। एक दृश्य से दूसरे दृश्य का जुड़ाव कमजोर है, जिससे फिल्म बिखरी हुई लगती है। निर्देशक ने कहानी को किस दिशा में ले जाना चाहा, यह स्पष्ट नहीं हो पाता। फिल्म कभी कानूनी ड्रामा बनने की कोशिश करती है, तो कभी सामाजिक टिप्पणी, लेकिन किसी भी शैली में सफल नहीं हो पाती। यह एक ऐसी यात्रा है जिसका कोई गंतव्य नहीं है, और दर्शक अंत तक यह समझने की कोशिश करते रहते हैं कि फिल्म कहना क्या चाहती है।

अभिनय और उनका प्रभाव: सुरेश गोपी, जो अपनी सशक्त भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं, इस फिल्म में भी अपनी पूरी कोशिश करते दिखते हैं। हालांकि, कमजोर पटकथा और दिशाहीन निर्देशन के कारण उनका प्रदर्शन भी फीका पड़ जाता है। अनुपमा परमेश्वरन ने भी अपनी भूमिका को निभाने का प्रयास किया है, लेकिन उनके चरित्र को पर्याप्त गहराई नहीं दी गई है, जिससे वह दर्शकों पर कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पातीं। सहायक कलाकार भी अपनी भूमिकाओं में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाते, क्योंकि उनके पास करने के लिए कुछ ठोस होता ही नहीं।

तकनीकी पक्ष: तकनीकी रूप से भी फिल्म औसत दर्जे की है। छायांकन और संपादन ठीक-ठाक हैं, लेकिन वे फिल्म की कमजोरियों को छुपाने में असमर्थ रहते हैं। संगीत भी यादगार नहीं है और कहानी को आगे बढ़ाने में कोई खास मदद नहीं करता। कुल मिलाकर, तकनीकी टीम ने अपना काम किया है, लेकिन एक मजबूत कहानी और निर्देशन के अभाव में उनका काम भी बेअसर साबित होता है।

निष्कर्ष: ‘Janaki V Vs State of Kerala’ एक ऐसी फिल्म है जो एक महत्वपूर्ण विषय को छूने का अवसर खो देती है। असंवेदनशील प्रस्तुति, बेमकसद पटकथा और दिशाहीन निर्देशन इसे एक नीरस और निराशाजनक अनुभव बनाते हैं। यह फिल्म एक ऐसे उदाहरण के रूप में खड़ी है कि कैसे एक अच्छी अवधारणा को खराब निष्पादन के कारण बर्बाद किया जा सकता है। यदि आप एक ऐसी फिल्म की तलाश में हैं जो आपको सोचने पर मजबूर करे या मनोरंजन प्रदान करे, तो यह फिल्म शायद आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरेगी।

हलीमा खलीफा
हलीमा खलीफाhttps://www.khalifapost.com/
हलीमा खलीफा एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं जो पहचान, संस्कृति और मानवीय संबंधों जैसे विषयों पर लिखती हैं। उनके आगामी कार्यों के अपडेट के लिए Khalifapost.com पर बने रहें।
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