नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा का इतिहास कई ऐसी कहानियों से भरा है, जो किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं हैं। ऐसी ही एक कहानी है 1975 में रिलीज हुई एक Film की, जिसने बिना किसी बड़े स्टार के, बेहद कम बजट में बनी होने के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया। यह फिल्म इतनी सफल रही कि इसने अपने बजट का 100 गुना से भी ज्यादा मुनाफा कमाया और मल्टीप्लेक्स में पूरे एक साल तक चली। लेकिन इस सफलता के बाद, इसके निर्माता को आयकर विभाग के छापे का भी सामना करना पड़ा।
बजट से 100 गुना अधिक कमाई का रिकॉर्ड
हम बात कर रहे हैं 1975 में रिलीज हुई Film ‘जय संतोषी मां’ की। यह फिल्म उस दौर में रिलीज हुई थी जब अमिताभ बच्चन की ‘शोले’ और ‘दीवार’ जैसी बड़ी स्टार कास्ट वाली फिल्में भी सिनेमाघरों में चल रही थीं। लेकिन ‘जय संतोषी मां’ ने अपनी सादगी और धार्मिक विषय-वस्तु से दर्शकों का दिल जीत लिया।
इस Film का बजट महज 5 लाख रुपये था, लेकिन इसने बॉक्स ऑफिस पर 5 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की। इस तरह इसने अपने बजट का 100 गुना से भी ज्यादा मुनाफा कमाकर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज भी कई बड़ी फिल्में नहीं तोड़ पाई हैं।
बिना स्टार के भी जबरदस्त सफलता
‘जय संतोषी मां’ में कोई बड़ा नामी सितारा नहीं था। फिल्म के मुख्य कलाकारों में कनन कौशल, आशीष कुमार और भारत भूषण जैसे कलाकार थे। इसके बावजूद, Film की कहानी और भक्तिभाव ने इसे दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। लोग सुबह-सुबह नंगे पांव चलकर फिल्म देखने जाते थे और सिनेमा हॉल के अंदर भी पूजा-पाठ जैसा माहौल बन जाता था।
यह Film एक साल से भी अधिक समय तक सिनेमाघरों में चली, जो उस समय एक अभूतपूर्व घटना थी। Film की सफलता ने यह साबित कर दिया कि भारतीय दर्शक कहानी और भावनाओं को स्टार पावर से ज्यादा महत्व देते हैं।
सफलता के बाद लगा IT का छापा
Film की इस शानदार सफलता ने इसके निर्माता और वितरकों को रातों-रात अमीर बना दिया। लेकिन इतनी बड़ी कमाई ने आयकर विभाग का ध्यान भी आकर्षित किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फिल्म की जबरदस्त कमाई के बाद इसके निर्माता और वितरक के घर और दफ्तर पर आयकर विभाग का छापा पड़ा।
यह घटना दिखाती है कि कैसे एक छोटी सी Film ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस के सारे अनुमानों को गलत साबित कर दिया, बल्कि इसने उस दौर में फिल्म उद्योग में होने वाली वित्तीय लेनदेन पर भी सवाल खड़े कर दिए। ‘जय संतोषी मां’ सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि यह भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक ऐसा अध्याय है जो बताता है कि सच्ची श्रद्धा और अच्छी कहानी का कोई मुकाबला नहीं है।