पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने हाल ही में एक बड़ा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि भारत दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान के लिए किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करता है। यह बयान भारत के उस पुराने और स्थापित रुख की पुष्टि करता है, जिसमें वह हमेशा से मानता आया है कि India और पाकिस्तान के बीच के सभी विवाद द्विपक्षीय ही हैं और उनका समाधान केवल दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत से ही हो सकता है।
भारत का पुराना रुख
India का हमेशा से यह मानना रहा है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। India ने पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया है कि जब तक वह अपनी धरती से भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को खत्म नहीं करता, तब तक कोई भी सार्थक बातचीत संभव नहीं है। डार का यह बयान ऐसे समय में आया है जब हाल ही में “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया था। डार ने अपने साक्षात्कार में कहा कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की पेशकश की थी, जिसे पाकिस्तान ने स्वीकार कर लिया था, लेकिन भारत ने इसे यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है। इस बयान ने उन दावों की भी हवा निकाल दी, जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता को लेकर किए थे।
बातचीत की शर्त
डार ने यह भी कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन यह बातचीत व्यापक होनी चाहिए, जिसमें आतंकवाद, व्यापार, अर्थव्यवस्था और जम्मू-कश्मीर जैसे सभी मुद्दे शामिल हों। हालांकि, भारत का रुख बिल्कुल साफ है कि कोई भी बातचीत तभी संभव है जब पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को पूरी तरह से बंद करे। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर भारत कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।
भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों में इतिहास के कई उतार-चढ़ाव रहे हैं। 1966 का ताशकंद समझौता और 1972 का शिमला समझौता इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जब दोनों देशों ने अपने विवादों को द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से सुलझाने की प्रतिबद्धता जताई थी। डार का यह बयान इस बात की पुष्टि करता है कि भारत अभी भी उसी नीति का पालन कर रहा है, जिसमें वह किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करता है।