Saturday, October 4, 2025
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‘Dhadak 2’ की डायरेक्टर शाज़िया इक़बाल ने तोड़ा भ्रम: “जातिवाद हर जगह है”

बॉलीवुड में सामाजिक मुद्दों पर बनने वाली फ़िल्मों का हमेशा से एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है, और अब ‘Dhadak 2’ के साथ निर्देशक शाज़िया इक़बाल इस संवेदनशील विषय को एक नए आयाम पर ले जा रही हैं. हाल ही में एक साक्षात्कार में, शाज़िया इक़बाल ने जाति व्यवस्था पर अपनी मुखर राय व्यक्त की, जो उनकी फ़िल्म के मूल में भी है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जातिवाद केवल ग्रामीण भारत की समस्या नहीं है, बल्कि यह शहरी परिवेश में भी गहराई से जड़ें जमाए हुए है.

शाज़िया इक़बाल का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत में जातिगत भेदभाव पर सार्वजनिक बहस तेज हो गई है. उन्होंने जोर देकर कहा, “लोग सोचते हैं कि जाति सिर्फ गांवों या छोटे कस्बों में मौजूद है, लेकिन यह एक गलत धारणा है. जाति हर जगह है, हमारे शहरों में, हमारी शिक्षा प्रणाली में, हमारे कार्यस्थलों में, और यहां तक कि हमारे सामाजिक ताने-बाने में भी यह सूक्ष्म और कभी-कभी स्पष्ट रूपों में मौजूद है.”

‘Dhadak 2’, जो 2018 की हिट फ़िल्म ‘धड़क’ का सीक्वल है, एक प्रेम कहानी के माध्यम से जातिगत भेदभाव की कठोर वास्तविकताओं को दर्शाने का प्रयास करती है. पहली फ़िल्म भी इसी विषय पर आधारित थी, लेकिन शाज़िया इक़बाल का मानना है कि ‘Dhadak 2’ इस मुद्दे की जटिलता को और भी गहराई से खंगालती है. उन्होंने बताया कि फ़िल्म की कहानी को इस तरह से बुना गया है कि वह दर्शकों को शहरी भारत में भी जातिगत पूर्वाग्रहों और उनके परिणामों के बारे में सोचने पर मजबूर करे.

निर्देशक ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे शहरीकरण और आधुनिकीकरण ने जातिवाद को खत्म नहीं किया है, बल्कि इसे नए और अधिक छिपे हुए रूपों में ढाल दिया है. “शहरी क्षेत्रों में, जातिगत भेदभाव अक्सर अधिक परिष्कृत तरीकों से होता है. यह सीधे तौर पर दिखाई नहीं दे सकता है, लेकिन यह अवसरों तक पहुंच, सामाजिक स्वीकृति और यहां तक कि व्यक्तिगत संबंधों को भी प्रभावित करता है,” उन्होंने समझाया.

शाज़िया इक़बाल ने अपनी फ़िल्म के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश देने की उम्मीद जताई है. उनका मानना है कि कला में समाज को आईना दिखाने और कठिन बातचीत शुरू करने की शक्ति होती है. ‘Dhadak 2’ का उद्देश्य न केवल एक मनोरंजक फ़िल्म बनना है, बल्कि दर्शकों को जातिवाद की व्यापकता और इससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करना भी है.

फ़िल्म के कलाकार भी इस संवेदनशील विषय को लेकर काफी सजग हैं. उन्होंने भी शूटिंग के दौरान जातिवाद के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की है, जिससे उनके किरदारों में और भी यथार्थवाद आ सके. ‘Dhadak 2’ की रिलीज का इंतजार है, और उम्मीद की जा रही है कि यह फ़िल्म जातिवाद पर एक नई और महत्वपूर्ण बहस को जन्म देगी, खासकर शहरी संदर्भ में, जैसा कि निर्देशक शाज़िया इक़बाल ने रेखांकित किया है.

यह फ़िल्म हमें याद दिलाती है कि जब तक हम इस मुद्दे को स्वीकार नहीं करते कि जाति हर जगह है, तब तक हम एक न्यायपूर्ण और समान समाज का निर्माण नहीं कर सकते.”

हलीमा खलीफा
हलीमा खलीफाhttps://www.khalifapost.com/
हलीमा खलीफा एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं जो पहचान, संस्कृति और मानवीय संबंधों जैसे विषयों पर लिखती हैं। उनके आगामी कार्यों के अपडेट के लिए Khalifapost.com पर बने रहें।
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