Saturday, October 4, 2025
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दिल्ली दंगों के आरोपियों को बड़ा झटका: High Court ने उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका खारिज की

Delhi High Court ने 2020 के दिल्ली दंगों की कथित साजिश से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और कार्यकर्ता शरजील इमाम की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलेंद्र कौर की पीठ ने दोनों आरोपियों के साथ-साथ सात अन्य आरोपियों की याचिकाएं भी खारिज कर दीं। इस फैसले के बाद, खालिद और इमाम को फिलहाल जेल में ही रहना होगा।

यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज किया गया था। दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया है कि फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे एक “सुनियोजित साजिश” का हिस्सा थे। पुलिस के अनुसार, इस साजिश को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध की आड़ में अंजाम दिया गया था। दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।

कोर्ट में बहस और दलीलें

जमानत सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष ने आरोपियों की याचिकाओं का कड़ा विरोध किया। सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि यह एक वैश्विक साजिश थी जिसका उद्देश्य भारत को बदनाम करना था। उन्होंने कहा कि अगर कोई राष्ट्र के खिलाफ काम करता है, तो उसे तब तक जेल में रहना चाहिए जब तक कि वह बरी न हो जाए।

दूसरी ओर, उमर खालिद के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई भड़काऊ या आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली है, जिससे यह साबित हो सके कि उन्होंने दंगों की साजिश रची थी। उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप में होना अपराध नहीं है। शरजील इमाम के वकील ने भी उनकी भूमिका को सीमित बताते हुए जमानत की मांग की थी।

उच्च न्यायालय का फैसला और आगे की राह

High Court ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि आरोपियों की भूमिका को हल्के में नहीं लिया जा सकता है और उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं। अदालत ने कहा कि प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन उसकी आड़ में हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती।

उमर खालिद और शरजील इमाम, जो पिछले कई वर्षों से जेल में हैं, अब High Court के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। उनके वकीलों ने संकेत दिया है कि वे जल्द ही शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कानूनों के बीच संतुलन को रेखांकित करता है।

हलीमा खलीफा
हलीमा खलीफाhttps://www.khalifapost.com/
हलीमा खलीफा एक प्रतिभाशाली लेखिका हैं जो पहचान, संस्कृति और मानवीय संबंधों जैसे विषयों पर लिखती हैं। उनके आगामी कार्यों के अपडेट के लिए Khalifapost.com पर बने रहें।
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