हाल ही में चीन के तियानजिन में हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने SCO की भूमिका को और अधिक विस्तारित करने पर जोर दिया है। इस सम्मेलन में उन्होंने अमेरिका-केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की आलोचना की और गुटीय टकराव और धमकियों का विरोध करने की अपील की। जिनपिंग का यह रुख बताता है कि चीन इस संगठन को केवल एक क्षेत्रीय सुरक्षा मंच के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे बहुपक्षीय निकाय के रूप में देखता है, जो वैश्विक मामलों में पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
SCO का विस्तार और चीन की रणनीति
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 2001 में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं द्वारा की गई थी। बाद में भारत और पाकिस्तान भी इसके पूर्ण सदस्य बने। चीन इस संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक है और वह इसे अपनी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ मानता है। चीन की मंशा है कि SCO को एक आर्थिक और सुरक्षा संगठन से बढ़ाकर एक व्यापक भू-राजनीतिक मंच बनाया जाए। इसके जरिए वह न केवल मध्य एशिया में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, बल्कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी अपनी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को भी बढ़ावा दे रहा है।
तियानजिन शिखर सम्मेलन के मुख्य बिंदु
तियानजिन में हुए 25वें SCO शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। इनमें से कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
- अमेरिकी टैरिफ नीति की निंदा: सम्मेलन में सदस्य देशों ने अमेरिका की टैरिफ नीतियों की कड़ी निंदा की और आपस में स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की।
- आतंकवाद पर साझा रुख: सम्मेलन के साझा घोषणापत्र में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की गई, जिससे आतंकवाद के खिलाफ SCO की साझा प्रतिबद्धता दिखाई देती है।
- विकास बैंक की स्थापना: एससीओ के सदस्य देशों के बीच वित्तीय सहयोग को मजबूत करने के लिए SCO विकास बैंक की स्थापना पर जोर दिया गया। यह कदम अमेरिकी प्रभुत्व वाले वित्तीय संस्थानों के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
- बहुपक्षवाद का समर्थन: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बहुपक्षीय दुनिया और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के लोकतांत्रिक स्वरूप के लिए काम करने की बात कही, जो स्पष्ट रूप से अमेरिका की “दादागिरी” के खिलाफ एक संदेश था।
भारत की भूमिका और कूटनीतिक संतुलन 🇮🇳
इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। उन्होंने अपने संबोधन में आतंकवाद पर दोहरे मापदंड न अपनाने की जोरदार वकालत की। भारत के लिए SCO एक महत्वपूर्ण मंच है क्योंकि यह उसे मध्य एशियाई देशों से जुड़ने का अवसर देता है और क्षेत्रीय सुरक्षा व स्थिरता में योगदान करने का मौका प्रदान करता है। चीन के साथ सीमा विवाद और तनाव के बावजूद, भारत ने इस सम्मेलन में भाग लेकर कूटनीतिक परिपक्वता दिखाई। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से द्विपक्षीय बैठकें भी कीं। इन बैठकों से दोनों देशों के संबंधों में सुधार की उम्मीद है।
भविष्य की दिशा
SCO का भविष्य वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चीन, रूस और भारत जैसे बड़े देशों की सदस्यता इसे पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले संगठनों के लिए एक मजबूत विकल्प बनाती है। हालांकि, सदस्य देशों के बीच आपसी मतभेद और विभिन्न रणनीतिक हित एक चुनौती भी पेश करते हैं। चीन का SCO एक ऐसे मंच के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास, जो उसकी भू-राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा कर सके, संगठन के भीतर संतुलन बनाने के लिए अन्य सदस्यों, विशेषकर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी।