मथुरा, प्रसिद्ध कथावाचक Aniruddhacharya महाराज ने हाल ही में अविवाहित महिलाओं के चरित्र को लेकर की गई अपनी टिप्पणी पर उपजे व्यापक विवाद के बाद सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगी है। उनकी टिप्पणी, जिसमें उन्होंने कहा था कि “कुछ अविवाहित महिलाओं का चरित्र ढीला होता है,” ने सोशल मीडिया और विभिन्न महिला संगठनों के बीच भारी आक्रोश पैदा कर दिया था।
Aniruddhacharya ने अपने हालिया वीडियो संदेश में स्पष्ट किया कि उनके बयान को गलत समझा गया और उनका इरादा सभी अविवाहित महिलाओं का अपमान करना नहीं था। उन्होंने कहा, “मैंने केवल उन कुछ असामाजिक तत्वों की बात की थी जो गलत कामों में लिप्त होते हैं। मेरा मतलब यह बिल्कुल नहीं था कि सभी अविवाहित महिलाएं ऐसी होती हैं। मेरी बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जिससे मुझे बहुत दुख हुआ है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर मेरी किसी बात से किसी को ठेस पहुंची है, तो मैं हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। मैं हमेशा से नारी शक्ति का सम्मान करता आया हूं और मेरा उद्देश्य समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना रहा है।”
बयान पर विवाद और विरोध:
यह विवाद तब शुरू हुआ जब Aniruddhacharya का एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें वे अविवाहित महिलाओं के चरित्र पर टिप्पणी करते हुए दिखाई दे रहे थे। इस बयान को लैंगिक भेदभावपूर्ण और अपमानजनक बताते हुए कड़ी निंदा की गई। कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की थी, जबकि हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणी के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त की।
कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि ऐसे आध्यात्मिक गुरुओं को सार्वजनिक मंचों पर बोलने से पहले अपने शब्दों का चयन सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि उनके बयानों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
माफी का प्रभाव:
Aniruddhacharya की माफी के बाद, कुछ हद तक गुस्सा शांत होता दिख रहा है, हालांकि अभी भी कुछ वर्ग उनके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। कई लोगों ने उनकी माफी को स्वीकार किया है और कहा है कि गलतियों को स्वीकार करना और उनसे सीखना महत्वपूर्ण है।
यह घटना एक बार फिर इस बात पर प्रकाश डालती है कि सार्वजनिक हस्तियों, विशेषकर आध्यात्मिक गुरुओं को, अपने बयानों के प्रति कितनी सावधानी बरतनी चाहिए। उनके शब्दों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है और अनजाने में भी की गई कोई टिप्पणी बड़े विवाद का कारण बन सकती है। इस पूरे प्रकरण ने लैंगिक समानता और सम्मानजनक संवाद के महत्व पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है, जो भारतीय समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।