पंजाब में Ravi नदी के उफनते जल ने इस बार भारी तबाही मचाई है, जिससे गुरदासपुर, पठानकोट और अमृतसर जैसे सीमावर्ती जिलों में सैकड़ों गांवों में बाढ़ आ गई है। इस प्राकृतिक आपदा के पीछे जहां एक ओर ऊपरी इलाकों में हुई भारी बारिश को मुख्य कारण माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर पंजाब सरकार के बांध प्रबंधन से जुड़े फैसलों पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बांधों का प्रबंधन और जल-निकासी की समस्या
Ravi नदी पर बने प्रमुख बांधों में रणजीत सागर बांध (थीन बांध) और शाहपुर कंडी बैराज शामिल हैं। इन बांधों का मुख्य उद्देश्य बिजली उत्पादन, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल की बाढ़ के पीछे एक बड़ा कारण इन बांधों से पानी का अनियंत्रित या देर से छोड़ा जाना है।
- रणजीत सागर बांध (थीन बांध) का प्रबंधन: यह बांध Ravi नदी पर बना सबसे बड़ा बांध है। भारी बारिश के कारण बांध में पानी का स्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया था। इस स्थिति से निपटने के लिए, बांध प्रबंधन को पानी छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा। हालांकि, सवाल यह है कि क्या यह पानी पहले ही नियंत्रित तरीके से छोड़ा जा सकता था? कई बार बांधों में पानी का स्तर बढ़ने का इंतजार किया जाता है ताकि बिजली उत्पादन को अधिकतम किया जा सके। इस प्रकार की रणनीति से अचानक और बड़े पैमाने पर पानी छोड़ने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
- शाहपुर कंडी बैराज की अपूर्णता: शाहपुर कंडी बैराज परियोजना दशकों से लंबित थी और हाल ही में इसे पूरा करने का काम किया जा रहा है। इस बैराज का उद्देश्य रणजीत सागर बांध से छोड़े गए पानी को नियंत्रित करना और उसे सिंचाई के लिए उपयोग करना है। इस परियोजना के पूरी तरह से कार्यान्वित न होने के कारण रणजीत सागर बांध से छोड़ा गया अतिरिक्त पानी सीधे नदी में चला जाता है, जिससे बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो जाती है। यदि शाहपुर कंडी बैराज पूरी तरह से कार्यरत होता, तो पानी को नियंत्रित करके बाढ़ को काफी हद तक रोका जा सकता था।
- कमजोर तटबंध और गाद की समस्या: Ravi नदी के किनारे बने कई अस्थाई तटबंध (धूंसी बांध) कमजोर और अनियोजित थे। बाढ़ के पानी के तेज बहाव के कारण ये तटबंध टूट गए, जिससे पानी शहरी और ग्रामीण इलाकों में घुस गया। इसके अलावा, नदी के तल में सिल्ट (गाद) जमा होने से उसकी पानी ले जाने की क्षमता कम हो गई है। नदियों की समय पर डी-सिल्टेशन न होने से भी पानी का स्तर तेजी से बढ़ता है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
सरकार की प्रतिक्रिया और भविष्य की चुनौतियां
बाढ़ की स्थिति को देखते हुए, पंजाब सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों को “आपदा प्रभावित राज्य” घोषित किया है और राहत व बचाव कार्यों को तेज कर दिया है। सरकार ने बाढ़ से प्रभावित किसानों को राहत देने के लिए माइनिंग पॉलिसी में संशोधन करने का भी निर्णय लिया है, ताकि वे बिना रॉयल्टी दिए अपने खेतों से गाद हटा सकें।
हालांकि, सवाल यह है कि क्या ये कदम बाढ़ के कारणों का समाधान करेंगे? विशेषज्ञों और विपक्ष द्वारा यह आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार ने समय रहते बाढ़ प्रबंधन की तैयारियों पर ध्यान नहीं दिया। बांधों के बेहतर प्रबंधन, नदियों की नियमित सफाई और तटबंधों को मजबूत करने जैसे दीर्घकालिक उपायों की अनदेखी की गई।
यह बाढ़ एक चेतावनी है कि केवल तात्कालिक राहत कार्य ही पर्याप्त नहीं हैं। पंजाब सरकार को नदियों और बांधों के प्रबंधन के लिए एक व्यापक और दूरगामी नीति बनाने की आवश्यकता है। इसमें नदियों की नियमित डी-सिल्टेशन, तटबंधों का सुदृढ़ीकरण और बांधों से पानी छोड़ने के लिए एक पारदर्शी और वैज्ञानिक नीति बनाना शामिल है। जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता, तब तक हर साल मॉनसून के दौरान पंजाब पर बाढ़ का खतरा मंडराता रहेगा।