दक्षिण सिनेमा के सुपरस्टार रजनीकांत और निर्देशक लोकेश कनगराज का साथ आना किसी बड़े उत्सव से कम नहीं था। सिनेमाघरों में ‘थलाइवर’ की 171वीं फिल्म ‘Coolie’ का इंतजार फैंस बेसब्री से कर रहे थे। फिल्म रिलीज हो चुकी है और शुरुआती प्रतिक्रियाएं मिली-जुली हैं, जिसने दर्शकों को दो खेमों में बांट दिया है। जहां एक तरफ फैंस रजनीकांत के स्वैग और स्टाइल की तारीफ करते नहीं थक रहे, वहीं कुछ आलोचक और दर्शक इस बात पर निराश हैं कि फिल्म में विचारों की भीड़ तो है, लेकिन उनका असर कम रहा है।
कहानी: कई ट्रैक, कम प्रभाव
‘Coolie’ की कहानी एक रिवेंज थ्रिलर के रूप में शुरू होती है, जहां देवा (रजनीकांत) अपने दोस्त की मौत का बदला लेने निकलता है। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, इसमें कई और पहलू जुड़ते जाते हैं। फिल्म एक आम आदमी के अपराध सिंडिकेट को उजागर करने की कहानी में बदल जाती है। लोकेश कनगराज अपने खास स्टाइल के लिए जाने जाते हैं, जिसमें वह नॉन-लीनियर स्टोरीटेलिंग और कई सब-प्लॉट का इस्तेमाल करते हैं। ‘Coolie’ में भी यह स्टाइल दिखता है, लेकिन इस बार ये सब-प्लॉट कहानी को मजबूत करने की बजाय उसे बिखेरते हुए नजर आते हैं। फिल्म कई किरदारों और विचारों के बीच झूलती रहती है, जिससे मुख्य कहानी की पकड़ कमजोर होती जाती है।
अभिनय: थलाइवर का जादू कायम
रजनीकांत ने 74 साल की उम्र में भी अपनी एनर्जी, चार्म और स्क्रीन प्रेजेंस से दर्शकों को प्रभावित किया है। एक सिंगल क्लोज-अप शॉट भी दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर देता है। फिल्म में उनका “डी-एजिंग” यानी जवान दिखाने वाला काम भी काफी प्रभावशाली है। हालांकि, दमदार अभिनय के बावजूद कमजोर स्क्रिप्ट उनके किरदार को पूरी तरह से न्याय नहीं दे पाती।
फिल्म में नागार्जुन, सत्यराज, सौबिन शाहिर और श्रुति हासन जैसे बड़े नाम भी हैं। नागार्जुन विलेन साइमन के रूप में स्टाइलिश लगे हैं, लेकिन उनका किरदार वन-नोट ही रहा है। सौबिन शाहिर को एक दिलचस्प किरदार मिला है, लेकिन उनका टैलेंट पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो पाया। श्रुति हासन को एक अहम भूमिका मिली है, जबकि आमिर खान और उपेंद्र के कैमियो भी उतने प्रभावशाली नहीं लगते, जितना कि उनसे उम्मीद थी। ऐसा लगता है कि इन बड़े नामों को फिल्म में केवल पैन-इंडिया अपील के लिए शामिल किया गया है।
तकनीकी पहलू: दमदार लेकिन दिशाहीन
फिल्म तकनीकी रूप से काफी मजबूत है। गिरीश गंगाधरन की सिनेमैटोग्राफी शानदार है, जो हर फ्रेम को भव्य बनाती है। अनिरुद्ध रविचंदर का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की जान है, खासकर मास मोमेंट्स के दौरान। कुछ गाने और उनका फिल्मांकन भी अच्छा है। हालांकि, इन सभी तकनीकी खूबियों के बावजूद, फिल्म का निर्देशन कमजोर लगता है। लोकेश कनगराज का स्टाइल इस बार अपने ही वजन के नीचे दबता हुआ महसूस होता है।
निर्णय: मिला-जुला अनुभव
कुल मिलाकर, ‘Coolie’ एक मिली-जुली फिल्म है। यह रजनीकांत के फैंस के लिए तो एक ट्रीट हो सकती है, जो उन्हें अपने फेवरेट सुपरस्टार को एक्शन और स्टाइल में देखने का मौका देती है। लेकिन जो दर्शक लोकेश कनगराज से ‘कैथी’ और ‘विक्रम’ जैसी ठोस और कसी हुई कहानी की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें निराशा हो सकती है। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसका बिखरा हुआ नैरेटिव है, जहां कई अच्छे विचारों को एक साथ पिरोने की कोशिश की गई है, लेकिन कोई भी विचार पूरी तरह से खिल नहीं पाया है। यह एक ऐसी फिल्म है, जिसमें कुछ बेहतरीन पल हैं, लेकिन एक संपूर्ण और यादगार सिनेमाई अनुभव देने में यह पीछे रह जाती है।