नई दिल्ली: टेक जगत में उस समय हलचल मच गई, जब Artificial intelligence (AI) स्टार्टअप परप्लेक्सिटी ने दुनिया के सबसे लोकप्रिय वेब ब्राउज़र गूगल क्रोम को खरीदने के लिए एक अप्रत्याशित और साहसिक बोली लगा दी। कंपनी ने $34.5 बिलियन (लगभग 2.88 लाख करोड़ रुपये) का भारी-भरकम ऑल-कैश ऑफर दिया है, जो खुद परप्लेक्सिटी के अपने मूल्यांकन से भी कहीं ज्यादा है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब गूगल अमेरिका में एक बड़े एंटीट्रस्ट मुकदमे का सामना कर रहा है।
एंटीट्रस्ट मुकदमा बना अवसर
यह चौंकाने वाली बोली ऐसे ही नहीं लगाई गई है। इसका सीधा संबंध गूगल के खिलाफ चल रहे एक कानूनी मामले से है। पिछले साल, एक संघीय न्यायाधीश ने फैसला सुनाया था कि गूगल ने इंटरनेट सर्च में अपनी अवैध एकाधिकार (illegal monopoly) को बनाए रखा है। अब अमेरिकी न्याय विभाग (Department of Justice) गूगल पर दबाव डाल रहा है कि वह क्रोम ब्राउज़र को बेच दे, ताकि सर्च मार्केट में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिले। इसी स्थिति का फायदा उठाते हुए, परप्लेक्सिटी ने यह ऑफर देकर सबको चौंका दिया है।
परप्लेक्सिटी की रणनीति और शर्तें
परप्लेक्सिटी ने अपने प्रस्ताव में कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी रखी हैं, जो इस डील को और भी दिलचस्प बनाती हैं।
- ओपन-सोर्स कोड: कंपनी ने वादा किया है कि वह क्रोम के कोर कोड, जिसे क्रोमियम (Chromium) कहते हैं, को ओपन-सोर्स रखेगी। इससे अन्य ब्राउज़र निर्माताओं को भी इस पर काम जारी रखने की सुविधा मिलेगी।
- $3 बिलियन का निवेश: परप्लेक्सिटी ने क्रोम के विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए अगले दो सालों में $3 बिलियन का निवेश करने का संकल्प लिया है।
- डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन में बदलाव नहीं: सबसे खास बात यह है कि कंपनी ने कहा है कि वह डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन की सेटिंग में कोई बदलाव नहीं करेगी, यानी गूगल सर्च ही डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बना रहेगा, हालांकि यूजर्स के पास इसे बदलने का विकल्प हमेशा रहेगा।
- कर्मचारियों को ऑफर: कंपनी ने क्रोम के प्रमुख डेवलपर्स और इंजीनियरों को बनाए रखने के लिए “पर्याप्त हिस्से” को नौकरी की पेशकश करने का भी प्रस्ताव दिया है।
क्या गूगल क्रोम को बेचेगा?
हालांकि, परप्लेक्सिटी का यह ऑफर बेहद आकर्षक है, लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि गूगल शायद ही क्रोम को बेचेगा। क्रोम गूगल के लिए सिर्फ एक ब्राउज़र नहीं है, बल्कि यह उसके पूरे इकोसिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उसके विज्ञापन राजस्व और AI विकास के लिए मूल्यवान डेटा का स्रोत है। गूगल ने पहले ही इस मुकदमे की अपील करने की योजना बना रखी है, और वह क्रोम को बचाने के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ सकता है।
अन्य दावेदार भी मैदान में
यह भी खबर है कि परप्लेक्सिटी अकेली ऐसी कंपनी नहीं है जिसने क्रोम में रुचि दिखाई है। ओपनएआई (OpenAI), याहू (Yahoo) और निजी इक्विटी फर्म अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट (Apollo Global Management) जैसी अन्य बड़ी कंपनियों ने भी इस पर अपनी नजरें जमा रखी हैं। परप्लेक्सिटी का यह कदम एक बड़ी चाल है, जो न केवल खुद को सुर्खियों में ला रहा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि AI कंपनियां भविष्य में इंटरनेट के गेटवे (gateways) को नियंत्रित करने के लिए कितनी महत्वाकांक्षी हैं।
आगे क्या होगा?
अब सबकी निगाहें न्यायाधीश अमित मेहता के अंतिम फैसले पर टिकी हैं, जो इस महीने के अंत में आने की उम्मीद है। यह फैसला तय करेगा कि गूगल को वास्तव में क्रोम बेचने पर मजबूर किया जाएगा या नहीं। अगर ऐसा होता है, तो परप्लेक्सिटी का यह ऑफर एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। फिलहाल, यह देखना बाकी है कि यह हाई-स्टेक्स ड्रामा किस दिशा में जाता है और क्या परप्लेक्सिटी जैसी एक स्टार्टअप कंपनी वास्तव में एक टेक दिग्गज से उसका सबसे मूल्यवान हथियार छीन पाती है।